आ के टंक जाता है माथे पे हर रोज ,
अब वो दूर चला गया है हमसे ,
और दिख रहा है पूरा का पूरा ,
सिन्दूरी सूरज तुम दूर ही रहना हमसे ,
वहाँ आसमान में रोज देख तो पायेंगे तुम्हे ,
दूर से कुछ कह तो पायेंगे तुमसे ,
कुछ यहाँ की ,कुछ उस जहां की ,
जहां है सिर्फ एक मौन और खामोशी का ,
विस्तार ही विस्तार ...................
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.कभी कभी तो आना मिलने..............
तुम सुन रहे हो न सिन्दूरी सूरज ??????????