Thursday, September 22, 2011

( दुआ )
दुआओं में है ये कितना असर ,
सिज़दे में झुके हैं उनके जो सिर
कभी उठते क्यूँ नहीं
उट्ठे हैं उनके जो हाथ ,
कभी झुकते क्यूँ नहीं

( मन )
मन तो बे- रहम
मांगे कुछ करम
चाहे कुछ असर
नहीं कोई रहम
मन तो बे -रहम
नीलम मिश्रा

Friday, September 2, 2011

न जाने क्यूँ तुम्हारा मंदिर मुझे खटक रहा है

रसोई से काम करते समय नज़र जितनी दूर जाती उतनी दूर तक फैली हरियाली मन को मोह लेती थी बस मन खुश तो दुनिया रंगबिरंगी ..............सोचती दिल्ली में भी कहीं कभी इतनी हरियाली देखने को मिलेगी ............पर किस्मत के धनी लोगों को वो सब मिलता है जो कुदरत के पास होता है,सुबह सुबह चिड़ियों का उड़ना ,उनका चह- चहाना दिल को खुश कर देता ,ऐसा लगता हमे किता बड़ा आँगन मिल गया है ..............फिर धीरे धीरे एक छोटा सा मंदिर बना थोडा सा आंगन भक्तों के लिए भी .... चलो दे दिया .पर अब कुछ घुटन सी हो रही है वहां पर एक बड़ा मंदिर बनते देख कर अजीब सी कोफ़्त हो रही है ................कितने सारे पंछियों का बसेरा कितने सारे पेड़ों की छाँव और दूर तक फैली हरियाली मन को शांत करती थी ...............पर अब बैचनी दिनोंदिन बढती जा रही है ......आने वाले कर्म कांडों को सोचकर ,शोर शराबे को सोचकर लोगों के धर्म के नाम पर बढ़ते उन्माद को सोचकर ...............हे ईश्वर हमे माफ़ करना .................पर पहली बार न जाने क्यूँ तुम्हारा मंदिर मुझे खटक रहा है

अपने देश का सावन बाकी है अभी ...........

काले बादल पर उड़ते वो काले पंछी
काली रातों की वो उजली मस्ती ........
पत्तों की सरसराहट ने कह दिया है जैसे उनके कानों में
ए दिल कहीं मत चल अभी ............
अभी तो अपने देश का सावन बाकी है अभी ...........