Wednesday, June 9, 2010

कुछ भी हो सकता है

अँधेरा बैठा है कोने में गुमसुम सा
जाओ उसे गोद में उठाओ ,
और प्यार करो,
जब वह खिलखिलाने लगे ,
तो समझना दिन निकल आया है ,
वाह री किस्मत ....................
रात को जाना है
तो दिन को आना है
और जब दिन को ......
तब रात को आना है
दो सिरे रात और दिन के
इन्हे एक साथ गले मिलते
प्यार करते ,
खिलखिलाते हुए
देखना है
कैसे .....................................
ये तो खुदा जाने
सुना है ,
अल्लाह की रहमत हो
तो कुछ भी हो सकता है
कुछ भी हो सकता है
कुछ भी हो सकता है.....................................