सिन्दूरी सूरज या उजली आस का नवल प्रभात
अल्हड धूप की अलसाई वीरान सूरत ,
सुरमई शाम का कोई सूना आँगन
दूधिया चाँद की शर्मीली रात
प्रकृति ने किया जिसके लिए श्रृंगार ,
वो आया ,वो आया ,वो अब आया सजन
क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार? रहने दो हे देव! अरे यह मेरा मिटने का अधिकार
Monday, August 8, 2011
Monday, August 1, 2011
चलो ऐसा कर लें कुछ
चलो ऐसा कर लें कुछ
यादों के झरोखों में जब तुम आते हो ,
संग अपने कितनी और शामें लाते हो ,
याद करती हूँ और कितनी ही उन बातों को
जो न तो तुमने कहीं ,न हमने सुनी कभी ,
पर कुछ तो था कि छूटता ही नहीं ,
तुम्हारी गिरफ्त से न मेरी कमजोर पकड़ से ,
चलो आज ऐसा कर ले कुछ
तुम और हम एक और शाम सजाएं ,
न तुम कुछ कहो न हम कुछ सुने
बस एक दूसरे के कंधे पर रखे सर ,
और सुनते रहे दूर से आती उस
मुरली की आवाज वो धुन ,
जो आज भी तुन्हारी और मेरी
साँसों में बसती है ..................
यादों के झरोखों में जब तुम आते हो ,
संग अपने कितनी और शामें लाते हो ,
याद करती हूँ और कितनी ही उन बातों को
जो न तो तुमने कहीं ,न हमने सुनी कभी ,
पर कुछ तो था कि छूटता ही नहीं ,
तुम्हारी गिरफ्त से न मेरी कमजोर पकड़ से ,
चलो आज ऐसा कर ले कुछ
तुम और हम एक और शाम सजाएं ,
न तुम कुछ कहो न हम कुछ सुने
बस एक दूसरे के कंधे पर रखे सर ,
और सुनते रहे दूर से आती उस
मुरली की आवाज वो धुन ,
जो आज भी तुन्हारी और मेरी
साँसों में बसती है ..................
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