Monday, August 8, 2011

वो आया सजन

सिन्दूरी सूरज या उजली आस का नवल प्रभात

अल्हड धूप की अलसाई वीरान सूरत ,

सुरमई शाम का कोई सूना आँगन

दूधिया चाँद की शर्मीली रात

प्रकृति ने किया जिसके लिए श्रृंगार ,

वो आया ,वो आया ,वो अब आया सजन

Monday, August 1, 2011

चलो ऐसा कर लें कुछ

चलो ऐसा कर लें कुछ

यादों के झरोखों में जब तुम आते हो ,
संग अपने कितनी और शामें लाते हो ,
याद करती हूँ और कितनी ही उन बातों को
जो न तो तुमने कहीं ,न हमने सुनी कभी ,
पर कुछ तो था कि छूटता ही नहीं ,
तुम्हारी गिरफ्त से न मेरी कमजोर पकड़ से ,
चलो आज ऐसा कर ले कुछ
तुम और हम एक और शाम सजाएं ,
न तुम कुछ कहो न हम कुछ सुने
बस एक दूसरे के कंधे पर रखे सर ,
और सुनते रहे दूर से आती उस
मुरली की आवाज वो धुन ,
जो आज भी तुन्हारी और मेरी
साँसों में बसती है ..................