Friday, December 16, 2011

कोई तेरा वो सपना

लाख हो मंजिलें कठिन ,
कितनी भी राहें हो पथरीली ,
हो हौसला आगे बढ़ने का ,
तो हो जायेंगी
हर मुश्किल आसाँ
हर दुस्वार सफ़र
हर पल आसाँ
कर यकीन ,
रख यकीन अपना ,
नहीं ले सकता
तेरी आँखों से
कोई तेरा वो सपना

Friday, December 2, 2011

पारे की सी आब जो रखता है

दिल दरिया तो कभी समंदर
दिल शीशा तो कभी पत्थर

पारे की सी आब जो रखता है ...............


दिल दर्द दिल दवा
दिल मुजरिम दिल मुंसिफ

मरहम पाने की आस जो रखता है.............


दिल तमाशा दिल प्यासा
दिल दुनिया दिल तिनका

झरोखे की चाह में एक दीवार जो रखता है .............

Thursday, December 1, 2011

पर तुम अपने कपड़े रोज बदलते रहे .......

जो मै कहूँ जरूरी नहीं,
वो तुम सुनो ही
पर कभी तो वो सुनो
जो हम न कह सके ,
इसी उम्मीद में
ऊम्र गुजर गयी
पर तुम कतई
नहीं बदले ..........,
पर तुम अपने कपड़े रोज बदलते रहे ........

Friday, November 25, 2011

चाँद तो अब भी.........

चाँद तो अब भी.........

क्याहुआ जो नहीं पूछा,
उन्होंने गर हाल कभी
क्या हुआ गर दिल से,
दिल दूर ही सही
क्या हुआ गर,
मेरी गली अब
तेरी गली नहीं
चाँद तो अब भी
पूरे शहर पे काबिज़ है ...............

Monday, October 31, 2011

एक याद

एक याद
बचपन से यौवन की दहलीज ,
गंगा का किनारा , मौजों की कंदील ,
हम सब का दौड़ना ,दौड़ते हुए अर्घ्य देना ,
पूरे बदन का ठंडा होना ,और कॉफी का पीना
जाते हुए उस टैग को देखना ..........."follow me "

Tuesday, October 11, 2011

पहले एक माँ हूँ

पहले एक माँ हूँ

मम्मा आप जा रही हो ,आप कब तक वापस आओगी अपने आंसुओं का सैलाब रोकने की कोशिश करते हुए अचानक एक सक्षम महिला की भूमिका निभाने की कोशिश करने लगी ,बेटा आप ठीक से पढ़ाई करना मम्मा आपसे दूर थोड़े ही जा रही है ,थोड़े दिनों की तो बात है ,आपकी अगली क्लास की प्रमोशन पर रिपोर्ट कार्ड लेने तो मै ही आऊंगी ,
पर आज लग रहा है कि एक माँ को कोई अधिकार नहीं कि बच्चों को अपनी ममता से दूर रखे ,अमित कहते हैं कि कुछ भी हो जाए तुम्हे अपनी आइडेन्टिटी नहीं खोनी है ,
बच्चे थोड़े दिनों में बड़े हो जायेंगे ,पर तुम्हारा करिअर एक बार चौपट तो समझो चौपट ......................
आज सुबह से ऑफिस में मन नहीं लग रहा है ,प्रोजेक्ट की रिपोर्ट तैयार करनी है पर दिमाग तो सात समंदर पार उस बेटी में डूबा है ,पूछ रही थी की आप मेरे बर्थडे में आओगी ना ,हे भगवान् क्या बिडम्बना है .मै उसकी माँ हूँ ...कोई बात नहीं शाम को बात करूंगी और उसे केक काटते हुए भी देख लूंगी ,शायद दिल को कुछ तसल्ली मिल ही जाए सोचकर काम में मन लगाने की कोशिश करने लगी ....शाम का वक़्त आ ही गया और मेरी प्यारी बेटी का केक काटने का .........
मैंने कैमरा ऑन किया सामने उदास आँखें लिए बैठी थी वो मेरी परी...उसकी आँखें सिर्फ मुझे देख रही थी मानों पूछ रही हो .......माँ तुम क्यूँ नहीं आ सकती ............मैंने सब कुछ समझते हुए भी उसे जताने की कोशिश की ,कि मै बिलकुल उसके पास हूँ ,सो कम ऑन ,मम्मा का "गुड्डा गरला" जल्दी से केक काटो मुझे बड़ी जोर कि भूख लगी है ,मै तो सारा केक खा जाऊंगी ,पर वो कुछ नहीं बोली,पास होने पर कहती है कि ,,नहीं पहले मेरे सारे फ्रेंड्स,.... बाद में तुम्हे और पापा को ...
पर आज उसने कुछ नहीं कहा उसे पता है कैमरे से देख तो सकते हैं पर केक नहीं ...........
केक काटते समय उसके गालों पर लुढके मोती देख कर मैंने तुरंत कैमरा ऑफ कर दिया और फफक फफक कर रो पड़ी,सोच रही हूँ "रेजिग्नेसन "दे कर वापस चली जाऊं पर दूसरे ही क्षण दिमाग में आया कि कितनी महिलायें ऐसी हैं जो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती ......मुझे पति और बच्चों से पूरा सहयोग है ....पर मै एक माँ भी हूँ ,कोई तो समझो मुझे कह कर फिर से चीख चीख कर रोने लगी ....

Thursday, September 22, 2011

( दुआ )
दुआओं में है ये कितना असर ,
सिज़दे में झुके हैं उनके जो सिर
कभी उठते क्यूँ नहीं
उट्ठे हैं उनके जो हाथ ,
कभी झुकते क्यूँ नहीं

( मन )
मन तो बे- रहम
मांगे कुछ करम
चाहे कुछ असर
नहीं कोई रहम
मन तो बे -रहम
नीलम मिश्रा

Friday, September 2, 2011

न जाने क्यूँ तुम्हारा मंदिर मुझे खटक रहा है

रसोई से काम करते समय नज़र जितनी दूर जाती उतनी दूर तक फैली हरियाली मन को मोह लेती थी बस मन खुश तो दुनिया रंगबिरंगी ..............सोचती दिल्ली में भी कहीं कभी इतनी हरियाली देखने को मिलेगी ............पर किस्मत के धनी लोगों को वो सब मिलता है जो कुदरत के पास होता है,सुबह सुबह चिड़ियों का उड़ना ,उनका चह- चहाना दिल को खुश कर देता ,ऐसा लगता हमे किता बड़ा आँगन मिल गया है ..............फिर धीरे धीरे एक छोटा सा मंदिर बना थोडा सा आंगन भक्तों के लिए भी .... चलो दे दिया .पर अब कुछ घुटन सी हो रही है वहां पर एक बड़ा मंदिर बनते देख कर अजीब सी कोफ़्त हो रही है ................कितने सारे पंछियों का बसेरा कितने सारे पेड़ों की छाँव और दूर तक फैली हरियाली मन को शांत करती थी ...............पर अब बैचनी दिनोंदिन बढती जा रही है ......आने वाले कर्म कांडों को सोचकर ,शोर शराबे को सोचकर लोगों के धर्म के नाम पर बढ़ते उन्माद को सोचकर ...............हे ईश्वर हमे माफ़ करना .................पर पहली बार न जाने क्यूँ तुम्हारा मंदिर मुझे खटक रहा है

अपने देश का सावन बाकी है अभी ...........

काले बादल पर उड़ते वो काले पंछी
काली रातों की वो उजली मस्ती ........
पत्तों की सरसराहट ने कह दिया है जैसे उनके कानों में
ए दिल कहीं मत चल अभी ............
अभी तो अपने देश का सावन बाकी है अभी ...........

Monday, August 8, 2011

वो आया सजन

सिन्दूरी सूरज या उजली आस का नवल प्रभात

अल्हड धूप की अलसाई वीरान सूरत ,

सुरमई शाम का कोई सूना आँगन

दूधिया चाँद की शर्मीली रात

प्रकृति ने किया जिसके लिए श्रृंगार ,

वो आया ,वो आया ,वो अब आया सजन

Monday, August 1, 2011

चलो ऐसा कर लें कुछ

चलो ऐसा कर लें कुछ

यादों के झरोखों में जब तुम आते हो ,
संग अपने कितनी और शामें लाते हो ,
याद करती हूँ और कितनी ही उन बातों को
जो न तो तुमने कहीं ,न हमने सुनी कभी ,
पर कुछ तो था कि छूटता ही नहीं ,
तुम्हारी गिरफ्त से न मेरी कमजोर पकड़ से ,
चलो आज ऐसा कर ले कुछ
तुम और हम एक और शाम सजाएं ,
न तुम कुछ कहो न हम कुछ सुने
बस एक दूसरे के कंधे पर रखे सर ,
और सुनते रहे दूर से आती उस
मुरली की आवाज वो धुन ,
जो आज भी तुन्हारी और मेरी
साँसों में बसती है ..................

Wednesday, July 13, 2011

तथास्तु ....................(ऐसा ही हो )

तथास्तु ..........(ऐसा ही हो )

क्यूंकि हँसना जरूरी है
हँसो अपने आप पर ,
अपनी नाकामियों पर ,
अपने दुचिन्तन पर ,
अपनी दुश्वारियों पर ,
अपनी कुंठाओं पर ,
अपनी स्वार्थपरता पर ,
अपनी चाटुकारिता पर ,
अपनी क्षुद्र संकीर्णता पर
या फिर
अपनी अस्वस्थ मानसिकता पर
.......................................

दूसरों पर कभी मत हँसो ............
हँसना ही है तो
दूसरों की दूसरों को नाकामयाब करने कि कोशिश पर
उनकी गन्दी राजनीति के दांवपेंच पर
उनकी झूठी छल प्रपंचना पर
उनके किये गए तिरस्कार पर
उनके हतोत्साहित मनोभाव पर
उनके भेदभाव पर ,,उनके जातिवाद पर
याद करते हुए कि इससे पहले खुल कर कब हसे थे ,
कोशिश करो कि इस बार पहले से ज्यादा ही हँसो
इस उम्मीद के साथ कि अगली बार न हो
कोई भी वजह इनमे से हँसने की.............
तथास्तु ....................

Sunday, July 10, 2011

तुम क्यूँ समझोगे ?????

तुम क्यूँ समझोगे ?????

कितनी बार मना किया ,
कि
ऐसे नहीं करते
कि
कभी किसी पर भी
बेवजह फब्तियां नहीं कसते
पर
तुम तो तुम थे ,
सुधरने की भी कोई गुज्जाइश कहाँ थी ??
सोचती रही ,
शायद आज नहीं तो कल तुम समझ जाओगे
कि
हम सब एक ईश्वरीय अंश हैं ,
सब ईश्वर
कि
एक श्रेष्ठ कृति हैं ,
पर तुम्हारे अहम औए तुम्हारे झूठे स्वाभिमान ने
तुम्हे शायद स्वयम सीखा दिया
कि
" अहम ब्रह्मास्मि "
अब तुम्हे कौन समझाए
कि
ब्रह्मा जी ने भी गलतियाँ तो की ही थी ...........

Wednesday, July 6, 2011

( दुखों की पोटली )

( दुखों की पोटली )

निकल पड़ी थी अनजान शहर में ,
अनजान चेहरों के बीच ,
कोई भी तो नहीं था जिसे पहचान सकूँ ,
कुछ विस्मय की स्थिति थी ,
पर अपने आप को सम्हालती हुई ,
अपने दुखों को सम्हालती हुई ,
चल ही पड़ी मै ,..........

उधर से राहगीर गुजरा ,
उसकी पोटली ठीक वैसी ,
जैसी की मेरी थी ,,
ईश्वर का चमत्कार था,
या फिर महज एक संयोग ,
दोनों की पोटली बदल गयी थी ,
अनजाने में ही ..............

अब दोनों ढो रहे थे,
एक दूसरे के दुःख
बिना किसी शिकायत के ,
मानो वजह मिल गयी हो ,
एक दूसरे को जीने की .............

(अमृता और इमरोज़ के नाम )

Thursday, June 23, 2011

क्या होगा????????????

क्या होगा जब वक़्त भी कम होगा
क्या होगा जब हाथ भी तंग होगा

क्या तब भी तुम उसी शिद्दत से पहचाने जाओगे किसी को ............

Saturday, June 18, 2011

पिता का नाम है ..............

कठिनतम क्षणों में रोज पूरी तरह संघर्ष` की कोशिश ,
पिता का नाम है ..............
जिन्दगी को खुशनुमा बनाने की पूरी नाकामयाब कोशिश ,
पिता का नाम है ..........
अपने घोसलों से अपने परिंदों को सबसे ऊंची उड़ान भरते देखना
पिता का नाम है ..........
अपने थके कन्धों पर बेटियों की डोली उठाने की कोशिश
पिता का नाम है ..........
अपने आसरे से बे-आसरा होने पर भी सबको प्यार के दो शब्द
पिता का नाम है ..........
रोज तिल -तिल कर मरते हुए भी जीते रहने की कवायद करना
शायद ये भी..............................
पिता का ही नाम है

Thursday, June 2, 2011

वो एक लड़की

वो एक लड़की
रास्ते में नज़र एकाएक रुक सी गयी उस पर ,गिलहरी की तरह उसे नीचे उतरते हुए देखने पर अच्छा लगा कि वह अपने बचपन के लिए भी समय निकाल ही लेती है ,पेड़ किसका था देख नहीं सकी कुछ आगे निकल चुकी थी मै ,पर उससे क्या जो देखना था वो तो देख ही लिया था ,दुबली सी काया ,गंदे से कपडे ,पर फुर्ती गज़ब की,देखते ही बनती थी ,अभी अम्मा के पास जायेगी ,अम्मा पेट से हैं ,कहती हैं भईया आने वाला है ,तो तबियत खराब ही रहती है ,उनके साथ बर्तन साफ़ करवाने ,सब्जी तरकारी कटवानी है ,घर चलकर माँ को खाना बनाकर खिलाना है ,छोटी बहन जो माँ से तू -तड़ाक करती है उसे भी डांट देती है वो ,पर माँ को भईया की जरूरत क्या है ..............बस यही बात समझ नहीं पाती वो ,एक भईया तो है ,माँ तो जान छिडकती है उस पर ,अब अगर दूसरा भईया भी आ गया तो .............मन ही मन कुंठित होती है वो ,पर अपनी माँ कि ऊँगली पकड़ते पकड़ते कब उसकी परछाई जितनी बड़ी हो गयी पता ही नहीं चला ,सारा काम -काज निबटाते निबटाते कब वो खुद अम्मा हो गयी अहसास ही नहीं हुआ उसको अम्मा दो महीने के बाद घर रुकेगी ,घर में खाने के लिए धीरे धीरे सामान जुटा रही है ,पुराने फटे कपडे लत्ते इकट्ठे कर रही है कहती है ,भईया के आने पर इनकी जरूरत होगी .............वो कुछ समझती नहीं बस चुप चाप उनका अनुकरण करती रहती पर........
आज ठीक एक महीने के बाद वो अपनी माँ के साथ आई है ,आते ही उसे कुछ पैसे और कुछ खाने का सामान दिया गया ,आज वट सावित्री का व्रत जो है ,पर वो भाई तो गुजर गया ................और सब कुछ सामान्य होनेलगा पर एक बात उस अबोध को अभी तक समझ में नहीं आई कि अम्मा को एक और भाई की जरूरत क्यूँ है ?????????

Wednesday, May 18, 2011

(आत्म साक्षात्कार )

(आत्म साक्षात्कार )

गलतियों पर गलतियाँ ,

उस पर से तुर्रा यह की ,

इस वजह से नहीं या ,

फिर हमारा इरादा तो,

ये नहीं था ,कुछ तो सोचो ,

अपने आप को खुद की नजरों

में कितना और गिराओगे अभी

(आत्म साक्षात्कार )

Tuesday, May 10, 2011

तुम दिल हो ,तुम धड़कन हो

तुम दिल हो ,तुम धड़कन हो ,
तुम मंजिल, तुम भगवन हो ,


तुम बाती,तुम ज्योति हो ,
तुम दीपक, तुम उजास हो


तुम सरुवर, तुम पानी हो ,
तुम सागर तुम सीपी हो


तुम नैया तुम खेवन हो ,
तुम मैया तुम जीवन हो


तुम तुम हो प्रभु तुम तुम हो ,
तुम हो तो प्रभु सब जग है ,

Thursday, April 21, 2011

इसकी घडी कभी खराब नहीं होती ??

वो रोज बिना नागा किये आता ,
रोज दुपहरी में छत पर आकर ,
दाना खाता,हमे निहारता ,
मानो पूछता हो कैसी हो ,
सब खैरियत तो है ,
हस देती कितनी फिक्र है तुम्हे .......
एक बात आज तक समझ में नहीं आई ,
इसकी घडी कभी खराब नहीं होती ?????
इसे कभी घड़ीसाज के पास जाते
तो आज तक देखा नहीं

Wednesday, April 13, 2011

उसकी सूरत और सीरत अभी तक एक थी

ये किस दिल की दुआ थी ,
ये किसकी नेमत थी ,

उसकी सूरत और सीरत अभी तक एक थी

Monday, April 4, 2011

मिलने वाले बिछड़ गए

मिलने वाले बिछड़ गए ,

बिछड़े तो किधर गए ,

जाने वो न जाने हम

रास्ते अपने ,मंजिल अपनी ,

अब क्या सोचो कहाँ गए,

मिले कभी ,तो गिला न करना
कहना उनसे सदा यही,

गुजर रहे थे ,
अरे बस यूँ ही ,
बस इधर ही­