Monday, August 8, 2011

वो आया सजन

सिन्दूरी सूरज या उजली आस का नवल प्रभात

अल्हड धूप की अलसाई वीरान सूरत ,

सुरमई शाम का कोई सूना आँगन

दूधिया चाँद की शर्मीली रात

प्रकृति ने किया जिसके लिए श्रृंगार ,

वो आया ,वो आया ,वो अब आया सजन

4 comments:

  1. what a philosophy......... good one....... wah wah...........

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  2. हम रात भर जिनकी यादों में खोये रहे,
    सुबह उन्ही की बांहों के साये में मिले.

    बहुत प्यार से अपने प्यार के लिये लिखी गई कविता.
    प्यारी लगी मुझे. लिखते रहिये नीलम जी. :)

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  3. सुन्दर.... कुछ सूफियाना अहसासों से सजी रचना... पिया मिलन कि आस ...

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  4. umda ...gaherai bhari

    http://eksacchai.blogspot.com

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