Thursday, March 14, 2013

काश जिन्दगी एक कविता ही होती


कितना अच्छा होता  कि
जिन्दगी एक कविता होती .
उसने कहा हँसते हुए .........
जिन्दगी एक कविता  होती 
 तो सारे रस ,छंद ,अलंकार
अपनी मुठ्ठीसे खोलकर 
बिखेर देती  चिडिओं के
उन  दानों की मानिंद जिसमे 
 सब अपने अपने हिस्से के
 सुख और सपने  बटोर लेते
काश   जिन्दगी एक कविता ही होती 
नीलम मिश्रा

कितनी मासूम हो तुम ......


कितनी मासूम हो तुम ......
लगता तो ऐसा है कि
शायद कठोरता को कभी
 जाना ही नहीं तुमने 
पर असलियत .......
मै जानता हूँ कि
तुम हो उस कुँए की रस्सी  
जो कठोर पत्थर पर
 घिस घिस कर अपने आपको 
छिन्न - भिन्न करते हुए भी 
ओढ़े रहती हो  एक मासूमियत 
एक निश्चलता, एक मासूम बच्चे की तरह 
नीलम मिश्रा

जिन्दगी में भी भला कोई बीच का रास्ता होता है .......

तेज बारिश के बाद खिली खिली धूप की पूरी सम्भावना
मन जो चाहे वैसा कुदरत को कब मंजूर होता है 

जिन्दगी में भी भला कोई बीच का रास्ता होता है ........

नीलम मिश्रा

पता नहीं फिर भी ये उधेड़बुन कैसी होती है ...

मेरे उलझे से सवाल होंगे 
तुम्हारे सुलझे से जवाब होंगे 

पता नहीं फिर भी ये उधेड़बुन कैसी होती है ......
नीलम मिश्रा

आओ हम झूला झूलें

चलो आज कुछ नया खेल खेलें
सच और झूठ के बीच की रस्सी लेकर

आओ हम झूला झूलें 

तुम सागर को छूने की जिद में
मै आसमा को पाने की हद में ,

आओ हम झूला झूलें 

धूप से छाँव तक
सिर से पाँव तक
तन मन भिगो ले

आओ हम झूला झूलें

नीलम मिश्रा

टूट जायेगी इक दिन ..............

इतनी लचीली शाख न बन ,
टूट जायेगी इक दिन ..............

फिर न कहना तुझे आगाह न किया 

नीलम मिश्रा

ये कैसा वार्तालाप.......

ये कैसा वार्तालाप........
मौन मूक मुस्कान
अविराम

नीलम मिश्रा

तुम चाहो तो सही..........

तुम चाहो तो सही...........
तुम्हारे आँसुओ के समन्दर को वाष्पित् कर 
तुम्हारी जिन्द्ग़ी का मै सूरज बन सकता हूँ

नीलम मिश्रा

बस एक तू............

प्रथम कौतुक .......
प्रथम आगमन 
प्रथम परिचय 
प्रथम मिलन 
प्रथम स्पर्श 
प्रथम चुम्बन 
प्रथम हास्य 
प्रथम मनुहार 
बस एक तू
माँ .............
नीलम मिश्रा