कितनी मासूम हो तुम ......
लगता तो ऐसा है कि
शायद कठोरता को कभी
जाना ही नहीं तुमने
पर असलियत .......
मै जानता हूँ कि
तुम हो उस कुँए की रस्सी
जो कठोर पत्थर पर
घिस घिस कर अपने आपको
छिन्न - भिन्न करते हुए भी
ओढ़े रहती हो एक मासूमियत
एक निश्चलता, एक मासूम बच्चे की तरह
नीलम मिश्रा
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