Tuesday, August 31, 2010

जन्माष्टमी का पर्व और बजरंगबली की जय

जन्माष्टमी का पर्व और बजरंगबली की जय

बाबा झांकी सजायिये ना ,बाबा आपको झांकी सजानी ही पड़ेगी हमे कुछ नहीं पता ,वो बाल -मन ये समझ ही नहीं पाया की बाबा आज बहुत उदास हैं क्यूंकि उनके पोते ,पोती और बेटे बहू ने जो अक्सर उनसे मिलने आते थे ,पिक्चर जाने का प्रोग्राम बनाया है ,और उधर से ही वो लोग घर चले जायेंगे ,बाबा कभी उन लोगों से कुछ नहीं कहते थे ,कभी कोई बात नहीं करते थे बस चुपचाप उनके आने से पहले सारा सामान ला कर रख देते थे ,बाबा से मिलने जाने की बैचैनी बढती जाती थी पर जब तक वो लोग रहते हम हाशिये पर खड़े रहते थे ,और मन ही मन सोचते कि
कब ये लोग जाएँ और हम बाबा के साथ जी भर के बात करें ,पर जब वो लोग होते तो हम दूसरे लोग हो जाते थे ,किरायेदार तो थे हम लोग, पर वो कैसा रिश्ता था हमलोगों का उनसे कोई समझ नहीं सकता .अपने पहले से तय प्रोग्रम के अनुसार वो लोग चले गए और पूरा घर खाली, एक सन्नाटा सा पसर गया ,बाबा बहुत उदास थे हमने समझ लिया था और उनकी उदासी हम ही भगा सकते थे
बाबा अब तो आप झांकी नहीं सजायेंगे हमे पता है आप उदास हैं वो लोग चले गए ना ...........इसलिए .
पर हमलोग तो हैं ना बाबा,आप झांकी सजायिये ना ,बाबा हमारी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा थे वो ,गीता पढ़ते और हम भी उनके साथ पढने की कोशिश करते ,
काफी जिद करते और और वो हमारी जिदों को सुनकर या इतना प्यार गैरों से पाकर अपना चेहरा अखबार में छुपा लेते थे .वो अपने आंसू कभी हमे दिखाना नहीं चाहते थे कहीं इतना बड़ा इंसान भी
रोता है कहीं ...........
शाम को एक बार फिर , आप झांकी नहीं सजायेंगे ना ..बाबा कुछ नहीं बोले चुपचाप अखबार पढने का ढोंग करने लगे .
बुझे मन से खाना खाया और सो गए ....
रात के १२ बजे हमे उठाया गया और ले जाया गया,हमारे आश्चर्य की कहीं कोई सीमा नहीं थी वहाँ पर आरती हो रही थी,झांकी भीसजी हुई थी ......
भये कृष्ण कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी
बाबा सिर्फ हमे देख रहे थे उन्होंने पूरी आरती में एक बार भी कृष्ण भगवान् को नहीं देखा
पूरे घर में जैकार लग रही थी बोलो बांके बिहारी की ,बोलो यशोदा मैया की ,बोलो नन्द गोपाल की वो छोटी सी लड़की जोर से बोली, बोलो बजरंगबली की जय..............
बाबा और वो हस दिए
बाबा का नाम था बजरंग बली तिवारी और उस लड़की का नाम था .............................
बाबा आज इस दुनिया में नहीं है ,आखिरी वक़्त ये लड़की उनके पास नहीं थी ................
पर आज भी नहीं भूली उन्हें और न ही जैकारा लगाना उनके नाम का
तो जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आप भी मेरे साथ बोलिए
" बजरंगबली की जय"

Thursday, August 5, 2010

दामन -ए -कोह

दामन -ए -कोह था ,
वो जन्नत का नूर था
कोह -ए नूर था ,
कभी जो काश्मीर था...............

Monday, August 2, 2010

बड़ी बेटी

बड़ी बेटी
फूलमती जरा इधर ठीक से लगाना झाड़ू ,अब तुम एक दिन की भी छुट्टी लेती हो तो हमसे काम ठीक से नहीं होता ,"अरे भाभी आप रहने दो मै अभी सब सफा कर दूँगी "कहते हुए फूलमती मेरे निर्देशों का पालन करने लगी, वो क्या हुआ कल तुम अपने बच्चों का दाखिला करवाने गयी थी ?"जी भाभी मै कल गए थी , मझली और उससे छोटी वाली का दाखिला करवा दिया है .अच्छा किया
शिक्षा का असर तो दीखता ही है ,फूलमती सिर्फ चार क्लास पढ़ी है ,पर उसके कपडे पहनने का सलीका ,उसके बात करने का ढंग उसे और कामवालियों से कहीं बेहतर स्थान देता था .यही सोच रही थी कि काम कुछ भी हो पढ़ाई कहीं न कही दिखती जरूर है ,एकदम से दिमाग में कहीं कौंधा कि बड़ी बेटी क्यूँ नहीं ..............................
वो खुद ही बोली भाभी जब मै घर गयी तो बड़ी वाली बेटी ने पूछा कि नाम लिखवा दिया है क्या .......पर मै उससे नजरें नहीं मिला पायी क्यूंकि उसकी पढ़ाई तीन क्लास के बाद रुकवा दी है मैंने ,
बेटे को संभालने के लिए भी तो कोई चाहिए था घर में ...