Tuesday, September 14, 2010

मासूम सा मन था वो क्यों सोया

त्रिवेणी -कहते हैं शायद इसे

कभी तन्हाईओं में वो गले लगकर इतना रोया


मासूम सा मन था वो क्यों सोया


हिचकियों की आवाजें अभी तक आ रही हैं कहीं दूर से

4 comments:

  1. ..बहुत खूब।
    ..इस ब्लॉग में देर से आने का अफसोस है।

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  2. त्रिवेणी -कहते हैं शायद इसे


    :)
    ji nilam ji...

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  3. नीलम जी,
    बहुत बढ़िया प्रयास है, थोड़े प्रयत्न से आप बहुत सुन्दर त्रिवेणी रच सकती हैं. शुभकामनाएं .

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  4. नीलम जी

    हिचकियों की आवाजें अभी तक आ रही हैं कहीं दूर से
    वाह क्या ख़ूब !

    कहते हैं न …
    कभी तनहाइयों में हमारी याद आएगी …
    :)


    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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