क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार? रहने दो हे देव! अरे यह मेरा मिटने का अधिकार
..बहुत खूब। ..इस ब्लॉग में देर से आने का अफसोस है।
त्रिवेणी -कहते हैं शायद इसे:)ji nilam ji...
नीलम जी,बहुत बढ़िया प्रयास है, थोड़े प्रयत्न से आप बहुत सुन्दर त्रिवेणी रच सकती हैं. शुभकामनाएं .
नीलम जी हिचकियों की आवाजें अभी तक आ रही हैं कहीं दूर से वाह क्या ख़ूब ! कहते हैं न …कभी तनहाइयों में हमारी याद आएगी … :) शुभकामनाओं सहित- राजेन्द्र स्वर्णकार
..बहुत खूब।
ReplyDelete..इस ब्लॉग में देर से आने का अफसोस है।
त्रिवेणी -कहते हैं शायद इसे
ReplyDelete:)
ji nilam ji...
नीलम जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रयास है, थोड़े प्रयत्न से आप बहुत सुन्दर त्रिवेणी रच सकती हैं. शुभकामनाएं .
नीलम जी
ReplyDeleteहिचकियों की आवाजें अभी तक आ रही हैं कहीं दूर से
वाह क्या ख़ूब !
कहते हैं न …
कभी तनहाइयों में हमारी याद आएगी …
:)
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार