Saturday, May 5, 2012

धूप

 ऊंचे मेहराबों से उतरती हुई

. गुजरती हुई सफ़ेद बालों के बीच से

 ठिठक कर खड़ी हो जाती अनायास

 नहीं जानती कि किस तरफ मुड़ना है

 देखना है किस तरफ .......

 बस हलकी सी यादों की दस्तक देती हुई

 गुजर जाती है ,किसी सिसकी के साथ

6 comments:

  1. यादों की सफ़ेद धूप, आती तो है

    बालों पर ही सही, छाती तो है ॥

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  2. वाह गज़ब बेहतरीन।
    ...बहुत बधाई।

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