Wednesday, October 27, 2010

सिन्दूरी सूरज

सिन्दूरी सूरज आ ही जाता है हर रोज ,
आ के टंक जाता है माथे पे हर रोज ,
अब वो दूर चला गया है हमसे ,
और दिख रहा है पूरा का पूरा ,
सिन्दूरी सूरज तुम दूर ही रहना हमसे ,
वहाँ आसमान में रोज देख तो पायेंगे तुम्हे ,
दूर से कुछ कह तो पायेंगे तुमसे ,
कुछ यहाँ की ,कुछ उस जहां की ,
जहां है सिर्फ एक मौन और खामोशी का ,
विस्तार ही विस्तार ...................
...............................................
.कभी कभी तो आना मिलने..............
तुम सुन रहे हो न सिन्दूरी सूरज ??????????

2 comments:

  1. सिन्दूरी सूरज कविता ,शाम को टहलते हुए ,पार्क में बच्चों को खेलते हुए देखकर ,और सूरज को सख्य भाव से साथ में चलते देखकर कुछ शब्दों को संजोया था ,पर .............लोगों ने कुछ गलत समझा
    और वो सूरज की टिप्पणी का इन्तजार कर रहें हैं ........................ये तो गलत बात है ना .............

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  2. बहुत ऊम्दा लिखा है भाभी आपने...
    a nice, expressive, uncommon and unique creation...

    Keep it up...

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