Monday, November 8, 2010

यकीनन ...................

यकीनन ....................
रिश्तों में जब स्वार्थ रुपी घुन लगता है ,
बना देता है जिन्दगी को एक नासूर ,
फिर वो सड़ने ,गलने लगते हैं ,
फिर सबसे बेहतर इलाज ये है कि ,
एक कैंसर के कीड़े की तरह आपको ,
पूरा का पूरा खा जाए ,उस से पहले ,
उस रिश्ते रुपी अंग को ही .........
काट कर फेक क्यों न दिया जाए ,
सड़ी हुई दुनिया के सड़े हुए लोगों ,
अभी भी वक़्त है उठ जाओ और
दो किसी जरूरत मंद को ,थोड़ी सी
हमदर्दी ,और थोडा सा प्यार
उन सबसे कहीं ज्यादा
सिर्फ और सिर्फ थोडा सा विश्वास
हम सबने सुना है ,और माना भी तो है कि
प्यार और विश्वास तो दुनिया बदल सकता है ,
एक संगमरमर को ताजमहल में बदल सकता है ,

8 comments:

  1. ji niceeeeeeeeeeeeeeeee poemmmmmmmmmmmmmmm

    bahut achhi h jiiiiiiiiiiiiiii

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  2. जिंदगी काटे नहीं कटती
    रिश्ते काटे नहीं कटते
    रिश्ते जो नासूर बन जाते हैं
    अपने ही श्वासों की डोर पर सवार रहते हैं।

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  3. बहुत बढ़िया नीलम जी.. अच्छा लिखा है :)

    मधु से मीठे हैं रिश्ते,
    निम्बू से खट्टे भी,
    प्यार घुल जाए अगर,
    बहुत ही अपने हैं रिश्ते.

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  4. good one..... kya sahi likha hai ji........ wos

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  5. "रिश्तों में जब स्वार्थ रुपी घुन लगता है ,
    बना देता है जिन्दगी को एक नासूर ,
    फिर वो सड़ने ,गलने लगते हैं"

    इस अभिधात्मक कविता में आपने यथातथ्य विचार प्रस्तुत किए हैं...!

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  6. शायद प्यार और विश्वास की ही तो कमी है वरना रिश्तों में दरार कैसे आ सकती है. एक सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  7. आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया व् अभिवादन अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें

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