Tuesday, December 7, 2010

पर अब वो मुठ्ठी कहाँ होती है ????

पर अब वो मुठ्ठी कहाँ होती है ??

एक मुठ्ठी नीला आसमान ,
एक मुठ्ठी पीला खलिहान
एक मुठ्ठी चीडियो को दाना
एक मुठ्ठी बागो के फूल
एक मुठ्ठी मिट्टी की धूळ ,
एक मुठ्ठी हंसती सी धूप
...............................
एक मुठ्ठी खाली समय ,
एक मुठ्ठी आवारा नजर ,
एक मुठ्ठी उसका अपनापन,
एक मुठ्ठी मेरा दीवानापन ,
पर अब वो मुठ्ठी कहाँ होती है ????

8 comments:

  1. मुट्ठी तो होती है नीलम जी...

    लेकिन नीला आसमान, पीला खलिहान , चुग्गा, धूप, धूल, माटी, दीवानापन,खाली वक़्त......अब लोगों के लिए शायद उतना मायने नहीं रखता...
    आप जैसे कुछेक इसे अब भी सहेज कर रखे हैं.....तो इंसानी जीवन में कुछ फीलिंग्स...कुछ संवेदनाएं...कुछ अच्छी भावनाएं बची हुई हैं...

    इन छूटी जाती चीजों को याद कराते रहिएगा...

    आपका आभार...

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  2. बहुत बढ़िया नीलम जी,
    आपकी कविता कुछ खो जाने का एहसास करा रही है, इसे पढकर यूँ ही चंद पंक्तियाँ, आपको लिखने का मन हुआ, कुबूल कीजिये :)

    बहुत कुछ समाये थी
    वो मुट्ठी मगर
    जब खोल दी...
    सब धुएँ सा बिखर गया...
    यादें समा गई अब
    खुली हथेली में,
    कौन बाँधे मुट्ठी
    इन विच्छेदित अस्थियों से!!!!!

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  3. नीलम मिश्रा जी
    नमस्कार !

    पर अब वो मुठ्ठी कहाँ होती है ????
    अच्छी कविता है । वक़्त के साथ बहुत कुछ खो जाता है …
    आप-हम जैसे संवेदनशील स्मृतियों को सहेजे रहते हैं … यह कम महत्वपूर्ण नहीं । आभार !


    ~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. मुट्ठी के बहाने आपने तो ...पुरे अर्थव्यवस्था की व्यख्य कर दी
    सुंदर है जी

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  5. ab wo mutthi kahan
    wo sapne kahan
    wo chidiya kahan
    wo dhup kahan
    wo saath kahan .........
    ise mujhe bhej dijiye parichay tasweer blog link ke saath vatvriksh ke liye

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  6. deevaanapan to mutthi bhar nahi hota.deevanapan to.......................mutthiyon ka mohtaaz katai nahi hota.

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