Friday, September 2, 2011

न जाने क्यूँ तुम्हारा मंदिर मुझे खटक रहा है

रसोई से काम करते समय नज़र जितनी दूर जाती उतनी दूर तक फैली हरियाली मन को मोह लेती थी बस मन खुश तो दुनिया रंगबिरंगी ..............सोचती दिल्ली में भी कहीं कभी इतनी हरियाली देखने को मिलेगी ............पर किस्मत के धनी लोगों को वो सब मिलता है जो कुदरत के पास होता है,सुबह सुबह चिड़ियों का उड़ना ,उनका चह- चहाना दिल को खुश कर देता ,ऐसा लगता हमे किता बड़ा आँगन मिल गया है ..............फिर धीरे धीरे एक छोटा सा मंदिर बना थोडा सा आंगन भक्तों के लिए भी .... चलो दे दिया .पर अब कुछ घुटन सी हो रही है वहां पर एक बड़ा मंदिर बनते देख कर अजीब सी कोफ़्त हो रही है ................कितने सारे पंछियों का बसेरा कितने सारे पेड़ों की छाँव और दूर तक फैली हरियाली मन को शांत करती थी ...............पर अब बैचनी दिनोंदिन बढती जा रही है ......आने वाले कर्म कांडों को सोचकर ,शोर शराबे को सोचकर लोगों के धर्म के नाम पर बढ़ते उन्माद को सोचकर ...............हे ईश्वर हमे माफ़ करना .................पर पहली बार न जाने क्यूँ तुम्हारा मंदिर मुझे खटक रहा है

5 comments:

  1. खटकने वाली बात तो है।
    प्रकृति ही भगवान है। इसी को उजाड़ दोगे तो फिर कैसा मंदिर? कहां रहेंगे भगवान?

    ReplyDelete
  2. mandir me aane waale har bhakt ko aapki chinta ko apna samajhna padega.har bhakt 1 vraksh lagaaye.ishwar ke naam par.na chidiya ka ghar ujdega na ishwar ka mandir khatkega.bas ishwar sabko sacchi raah dikhaate chale aisi praarthna hai..................bilkul pareshaan mat hona didi.

    ReplyDelete
  3. ऐसी घटनाओं से मन परेशान हो जाता है .....

    ReplyDelete
  4. इन भगवानों से हम वैसे ही खार खाए हुए हैं नीलम जी...
    किस वक़्त आपकी ये पोस्ट पढने को मिली....

    फिलहाल इन दिनों गणपति जी हमें टेंशन दे रहे हैं...जिधर देखिये मनों - क्विंटलों के गणपति....!!!

    सोच कर ही दिमाग घूम जाता है कि आने वाले समय में जब जमना में एक बूँद पानी भी नहीं होगा...तब भी बेहिसाब मूर्तियाँ यहाँ सदियों तक फेंकी जातीं रहेंगीं.....
    और क्यूँ ना फेंकीं जाएँ जी...
    हमारी पुरानी परम्परा है...हमारी श्रद्धा है........

    हमें अफ़सोस है कि हम उस मंदिर का कुछ नहीं कर सकते जो आपके उधर बन रहा है....

    किसी श्रद्धालु के मन में ठेस लगे हमारे कमेन्ट से तो माफ़ी चाहते हैं....क्यूंकि मन से बड़ा मंदिर कोई नहीं होता...

    आभार...

    ReplyDelete