Wednesday, May 9, 2012


निश्चिन्त और आश्वस्त 
थी मै ..........
अब तुम आ गए हो
 तुम्ही  सम्हालो 
मेरी सारी
 वे-वजह की चिंताएं ,
परेशानियाँ मेरे जीवन की सारी ,
नाकामियाँ...........
तुमने कहा कभी नहीं 
पर समझते  समझते  उम्र चुक गयी 
तुम नहीं चाहते थे एक परजीवी बेल 
जो बरगद की छाँव में अपनी ख़ुशी ढूंढती रहे 
नीलम मिश्रा

1 comment:

  1. सार्थक भाव! यथार्थ और अवधारणा में अक्सर अंतर होता है।

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