निश्चिन्त और आश्वस्त
थी मै ..........
अब तुम आ गए हो
तुम्ही सम्हालो
मेरी सारी
वे-वजह की चिंताएं ,
परेशानियाँ मेरे जीवन की सारी ,
नाकामियाँ...........
तुमने कहा कभी नहीं
पर समझते समझते उम्र चुक गयी
तुम नहीं चाहते थे एक परजीवी बेल
जो बरगद की छाँव में अपनी ख़ुशी ढूंढती रहे
नीलम मिश्रा
सार्थक भाव! यथार्थ और अवधारणा में अक्सर अंतर होता है।
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