Wednesday, June 9, 2010

कुछ भी हो सकता है

अँधेरा बैठा है कोने में गुमसुम सा
जाओ उसे गोद में उठाओ ,
और प्यार करो,
जब वह खिलखिलाने लगे ,
तो समझना दिन निकल आया है ,
वाह री किस्मत ....................
रात को जाना है
तो दिन को आना है
और जब दिन को ......
तब रात को आना है
दो सिरे रात और दिन के
इन्हे एक साथ गले मिलते
प्यार करते ,
खिलखिलाते हुए
देखना है
कैसे .....................................
ये तो खुदा जाने
सुना है ,
अल्लाह की रहमत हो
तो कुछ भी हो सकता है
कुछ भी हो सकता है
कुछ भी हो सकता है.....................................

7 comments:

  1. Lovely.......Gr8 Job Neelam........ keep it on......
    u have good sense to write

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  2. ur writting so philosphical...... its touching my heart........

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  3. अँधेरा बैठा है कोने में गुमसुम सा
    जाओ उसे गोद में उठाओ ,
    और प्यार करो,
    जब वह खिलखिलाने लगे ,
    तो समझना दिन निकल आया है
    ...बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ हैं ये...लाजवाव..!
    ...पहली बार आया इस ब्लॉग पर. बधाई.

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  4. अँधेरा बैठा है कोने में गुमसुम सा
    जाओ उसे गोद में उठाओ ,
    और प्यार करो,
    जब वह खिलखिलाने लगे ,
    तो समझना दिन निकल आया है
    ...लाजवाब पंक्तियाँ...वाह!

    मैंने इसके पहले भी कमेन्ट किया था...कहाँ चला गया..!

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  5. जब वो खिलखिलाने लगे तो समझना...दिन निकल आया है...


    बहुत सुन्दर...


    और ये अल्लाह कि ही तो रहमत है..कि दिन और रात कभी नहीं मिलते...
    ज़रा सोचिये, अगर ये कभी मिल जाएँ..तो क्या हो...?

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  6. जब वो खिलखिलाने लगे तो समझना...दिन निकल आया है...


    बहुत सुन्दर...


    और ये अल्लाह कि ही तो रहमत है..कि दिन और रात कभी नहीं मिलते...
    ज़रा सोचिये, अगर ये कभी मिल जाएँ..तो क्या हो...?

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  7. अँधेरा बैठा है कोने में गुमसुम सा
    जाओ उसे गोद में उठाओ ,
    और प्यार करो,
    जब वह खिलखिलाने लगे ,
    तो समझना दिन निकल आया है ,

    बहुत खूब .. अलग अन्दाज़

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