Monday, August 2, 2010

बड़ी बेटी

बड़ी बेटी
फूलमती जरा इधर ठीक से लगाना झाड़ू ,अब तुम एक दिन की भी छुट्टी लेती हो तो हमसे काम ठीक से नहीं होता ,"अरे भाभी आप रहने दो मै अभी सब सफा कर दूँगी "कहते हुए फूलमती मेरे निर्देशों का पालन करने लगी, वो क्या हुआ कल तुम अपने बच्चों का दाखिला करवाने गयी थी ?"जी भाभी मै कल गए थी , मझली और उससे छोटी वाली का दाखिला करवा दिया है .अच्छा किया
शिक्षा का असर तो दीखता ही है ,फूलमती सिर्फ चार क्लास पढ़ी है ,पर उसके कपडे पहनने का सलीका ,उसके बात करने का ढंग उसे और कामवालियों से कहीं बेहतर स्थान देता था .यही सोच रही थी कि काम कुछ भी हो पढ़ाई कहीं न कही दिखती जरूर है ,एकदम से दिमाग में कहीं कौंधा कि बड़ी बेटी क्यूँ नहीं ..............................
वो खुद ही बोली भाभी जब मै घर गयी तो बड़ी वाली बेटी ने पूछा कि नाम लिखवा दिया है क्या .......पर मै उससे नजरें नहीं मिला पायी क्यूंकि उसकी पढ़ाई तीन क्लास के बाद रुकवा दी है मैंने ,
बेटे को संभालने के लिए भी तो कोई चाहिए था घर में ...

7 comments:

  1. अक्सर ही देखा है..
    बड़े बेटा/बेटी...
    चाहे कितने भी छोटे क्यूँ ना हों...
    घर की जिम्मेवारियां माँ बाप के जितनी ही उठाते हैं...

    कई बार लगा है जैसे जिम्मेवारियों के साथ ही जनम लेते हों

    ReplyDelete
  2. मैं आपका इस ब्लॉगिस्तान में तहे दिल से स्वागत करता हूं। अल्लाह आपके ब्लॉग से नेकी के संदेश को आम करे। आपको उन तमाम सलाहियतों से नवाज़े जो एक बेहतरीन लेखक के लिये ज़रूरी हैं।

    ReplyDelete
  3. सच का जानने और बताने वाला केवल वह मालिक है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है और जो हर चीज़ को देखता है मगर उसे कोई आंख नहीं देख सकती। वही मार्गदर्शन करने का सच्चा अधिकारी है। कर्तव्य और अकर्तव्य का सही ज्ञान वही कराता है।
    http://vedquran.blogspot.com/2010/07/real-guide-anwer-jamal.html

    ReplyDelete
  4. आपकी लघु कथा अच्छी लगी.
    मनु जी की बात हमारी बात समझी जाय. :)

    ReplyDelete
  5. बड़ी बेटी...के जरिये आप ने जो सन्देश दिया है वह वास्तव में एक सोचनीय बिंदु बन कर उभरता है की अक्सर बेटियों पर पुरे घर की जिम्मेदारियां आन पड़ जाती हैं ओर उनका जीवन अधखिले फूल की भांति कुपोषित सा होकर रह जाता है ....लघु कथा की विधा पर आपका पूरा अधिकार मालूम पड़ा
    'बेटे को संभालने के लिए भी तो कोई चाहिए था घर में ...
    कहानी की अंतिम पर बहुत ही महतवपूर्ण पंक्ति समाज की सोच को दर्शाने के लिए पर्याप्त है

    ReplyDelete
  6. डॉ अनवर जमाल जी ,अभिन्न जी ,राजीव जी ,आन्नद पाण्डेय जी
    आप सभी का शुक्रिया इस ब्लॉग पर आने का ,आते रहिये ,हौसला बढ़ता है .

    ReplyDelete
  7. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

    ReplyDelete