Thursday, June 2, 2011

वो एक लड़की

वो एक लड़की
रास्ते में नज़र एकाएक रुक सी गयी उस पर ,गिलहरी की तरह उसे नीचे उतरते हुए देखने पर अच्छा लगा कि वह अपने बचपन के लिए भी समय निकाल ही लेती है ,पेड़ किसका था देख नहीं सकी कुछ आगे निकल चुकी थी मै ,पर उससे क्या जो देखना था वो तो देख ही लिया था ,दुबली सी काया ,गंदे से कपडे ,पर फुर्ती गज़ब की,देखते ही बनती थी ,अभी अम्मा के पास जायेगी ,अम्मा पेट से हैं ,कहती हैं भईया आने वाला है ,तो तबियत खराब ही रहती है ,उनके साथ बर्तन साफ़ करवाने ,सब्जी तरकारी कटवानी है ,घर चलकर माँ को खाना बनाकर खिलाना है ,छोटी बहन जो माँ से तू -तड़ाक करती है उसे भी डांट देती है वो ,पर माँ को भईया की जरूरत क्या है ..............बस यही बात समझ नहीं पाती वो ,एक भईया तो है ,माँ तो जान छिडकती है उस पर ,अब अगर दूसरा भईया भी आ गया तो .............मन ही मन कुंठित होती है वो ,पर अपनी माँ कि ऊँगली पकड़ते पकड़ते कब उसकी परछाई जितनी बड़ी हो गयी पता ही नहीं चला ,सारा काम -काज निबटाते निबटाते कब वो खुद अम्मा हो गयी अहसास ही नहीं हुआ उसको अम्मा दो महीने के बाद घर रुकेगी ,घर में खाने के लिए धीरे धीरे सामान जुटा रही है ,पुराने फटे कपडे लत्ते इकट्ठे कर रही है कहती है ,भईया के आने पर इनकी जरूरत होगी .............वो कुछ समझती नहीं बस चुप चाप उनका अनुकरण करती रहती पर........
आज ठीक एक महीने के बाद वो अपनी माँ के साथ आई है ,आते ही उसे कुछ पैसे और कुछ खाने का सामान दिया गया ,आज वट सावित्री का व्रत जो है ,पर वो भाई तो गुजर गया ................और सब कुछ सामान्य होनेलगा पर एक बात उस अबोध को अभी तक समझ में नहीं आई कि अम्मा को एक और भाई की जरूरत क्यूँ है ?????????

3 comments:

  1. ये दुनिया एक दर्द की गठरी जैसी क्यों है?

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  2. नीलम जी,

    इस जमाने में भी पुत्र के बारे में अक्सर ही सुनने को मिल जाता है ..कि एक आँख से भी भला दुनिया का क्या देखना....?
    बहुत गुस्सा उठता है ऐसी सोच पर.....

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