Monday, August 1, 2011

चलो ऐसा कर लें कुछ

चलो ऐसा कर लें कुछ

यादों के झरोखों में जब तुम आते हो ,
संग अपने कितनी और शामें लाते हो ,
याद करती हूँ और कितनी ही उन बातों को
जो न तो तुमने कहीं ,न हमने सुनी कभी ,
पर कुछ तो था कि छूटता ही नहीं ,
तुम्हारी गिरफ्त से न मेरी कमजोर पकड़ से ,
चलो आज ऐसा कर ले कुछ
तुम और हम एक और शाम सजाएं ,
न तुम कुछ कहो न हम कुछ सुने
बस एक दूसरे के कंधे पर रखे सर ,
और सुनते रहे दूर से आती उस
मुरली की आवाज वो धुन ,
जो आज भी तुन्हारी और मेरी
साँसों में बसती है ..................

4 comments:

  1. सकारात्मक सोच के साथ गहरी अभिव्यक्ति .....सुन्दर रचना

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  2. तुम और हम एक और शाम सजाएं ,
    न तुम कुछ कहो न हम कुछ सुने
    बस एक दूसरे के कंधे पर रखे सर ,
    और सुनते रहे दूर से आती उस
    मुरली की आवाज वो धुन ,
    जो आज भी तुन्हारी और मेरी
    साँसों में बसती है
    bahut badhiya

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