Friday, December 2, 2011

पारे की सी आब जो रखता है

दिल दरिया तो कभी समंदर
दिल शीशा तो कभी पत्थर

पारे की सी आब जो रखता है ...............


दिल दर्द दिल दवा
दिल मुजरिम दिल मुंसिफ

मरहम पाने की आस जो रखता है.............


दिल तमाशा दिल प्यासा
दिल दुनिया दिल तिनका

झरोखे की चाह में एक दीवार जो रखता है .............

10 comments:

  1. .


    दिल दरिया तो कभी समंदर
    दिल शीशा तो कभी पत्थर

    पारे की सी आब जो रखता है …

    वाह !

    दिल से अच्छा परिचय कराया अपने नीलम जी !

    सुंदर …

    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. दिल तो दिल है ...

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  3. वाह ...बहुत बढ़िया ....अलहदा

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  4. aap sabhi ka tah-e dil se shukriya ...........

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  5. आपके ब्लॉग पर मेरा प्रथम आगमन है, आपके शानदार कविताओं का संग्रह देख कर मन प्रफुल्लित हुआ... अब नियमित आवागमन होता रहेगा ...

    आप ने दिल के विषय में लिखा है मैं भी कोशिश करता हूँ :
    दिल पानी, दिल जानी, दिल अनजानी,
    दिल दर्द, दिल मर्द , दिल मनमानी !
    धन्यवाद !!!
    मुकेश गिरी गोस्वामी

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  6. आपके ब्लॉग पर मेरा प्रथम आगमन है, आपके शानदार कविताओं का संग्रह देख कर मन प्रफुल्लित हुआ... अब नियमित आवागमन होता रहेगा ...

    आप ने दिल के विषय में लिखा है मैं भी कोशिश करता हूँ :
    दिल पानी, दिल जानी, दिल अनजानी,
    दिल दर्द, दिल मर्द , दिल मनमानी !
    धन्यवाद !!!
    मुकेश गिरी गोस्वामी

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