मेरी प्यारी दादी माँ(अम्मा ) के लिए जो एक प्यारा सा तारा बन के हम सबको देखती हैं,पर उम्र के जिस पड़ाव पर हमने उन्हें देखा था ,वो कुछ यूँ ही था ।
अहसास है न अहसान कोई ,
जिन्दगी धूप की तरह गुजरती गई ,
और चेहरे पर झुर्रियां साया बनकर उभरती रहीं
उम्र के इस पड़ाव पर अब कोई नही है साथ ,
पर उम्र तो गुजरती है ,गुजरती गई ,
वक्त चलता रहा मेरे पैरों के साथ
या यूँ कहे कि पैर चलते रहे मेरे वक्त के साथ ,
सुबह से शाम तक ,दिन से रात तक ,
जिन्दगी बढती और बढती रही
इन सूनी आँखों में देखा तो पाया ,
न कोई रहबर न साया ,
मगर उम्र तो उम्र है गुजरती गई ,गुजरती रही
मगर उम्र तो उम्र है गुजरती गई ,गुजरती रही...
ReplyDeleteअब तो तारा बन गई..!
यह उम्र रूकती नहीं . दादी, माँ, साथ रहती नहीं बस यादें शेष रह जाती हैं... शायद इसी से जीवन में इतनी रोचकता बनी हुई है।
नीलम जी , बहुत अच्छा लिखा है . बधाई ।
ReplyDeleteमाँ महान है ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय रचना ।
न कोई रहबर न साया ,
ReplyDeleteखुद को रहबर बना लो
साये भी साथ चलने लगेंगे
सुन्दर रचना
अरुणेश जी ,वर्मा जी ,व् पाण्डेय जी ,आप सभी का शुक्रिया आपकी टिप्पणी सैदव मार्गदर्शन करती है .
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